हिमाचल दस्तक : विजय कुमार : संपादकीय : स्विट्जरलैंड के बैंकों में भारतीय नागरिकों के खातों का पहला ब्योरा मिलने से कालेधन की वापसी की उम्मीद बढ़ गई है। भारत को सूचनाओं के स्वत: आदान-प्रदान (एईओआई) की नई नियमित व्यवस्था के तहत यह ब्योरा उपलब्ध करवाया गया है।
स्विट्जरलैंड के संघीय कर प्रशासन (एफटीए) ने यह काम वैश्विक मानदंडों के तहत किया है। इस व्यवस्था से भारत को विदेशों में अपने नागरिकों द्वारा जमा कराए गए कालेधन के खिलाफ कानूनी लड़ाई में काफी मदद मिल सकती है। भारत के नागरिकों का काफी धन स्विज बैंकों में जमा है। यही वजह है कि वहां से यह धन वापस लाना देश में बड़ा मुद्दा है। चुनावों के दौरान तो इसका शोर काफी सुना जाता है। और तो और देश में सत्ता परिवर्तन में भी इसकी बड़ी भूमिका रही है। अब विपक्ष इस मुद्दे को सरकार के खिलाफ भुना रहा है कि कालेधन का क्या हुआ? ऐसे में सरकार को मिला यह ब्योरा काफी राहत पहुंचाने वाला है।
उसके सामने अब विपक्ष के कालेधन के सवाल पर असहज होने की नौबत नहीं आएगी। सरकार के लिए यह बड़ी उपलब्धि इसलिए है, क्योंकि भारत को पहली बार एईओआई ढांचे के तहत खातों के बारे में जानकारी दी गई है। इसमें उन खातों की सूचना दी जाएगी, जो अभी सक्रिय हैं। इसके अलावा उन खातों का ब्योरा भी उपलब्ध कराया जाएगा, जो 2018 में बंद किए जा चुके हैं। इतना जरूर है कि सूचनाओं के इस आदान-प्रदान की कड़े गोपनीयता प्रावधान के तहत निगरानी की जाएगी।
वहीं एफटीए के अधिकारियों ने भारतीयों के खातों की संख्या या उनके खातों से जुड़ी वित्तीय संपत्तियों का ब्योरा साझा करने से इनकार किया है। हां, पहचान, खाता और वित्तीय सूचना जरूर दी है। इसमें देश, नाम, पते और कर पहचान नंबर के साथ वित्तीय संस्थान, खाते में शेष और पूंजीगत आय का ब्योरा है। सरकार के लिए राहत की बात यह है कि इन सूचनाओं के आधार पर बेहिसाब धन रखने वाले लोगों के खिलाफ अभियोजन का ठोस मामला बन सकता है। एफटीए ने अपना काम कर दिया है, कार्रवाई की बारी भारत की है।